समान नागरिक संहिता क्या है ?
समान नागरिक संहिता कानूनों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया गया है जो सभी नागरिको के लिए, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो , व्यक्तिगत मामलों जैसे विवाह, तलाक़, बच्चा गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार को नियंत्रित करता है। दूसरे शब्दों अलग -अलग पंथो के लिए अलग -अलग सिविल कानून न होना ही समान नागरिक संहिता की मूल भावना है।
अनुच्छेद 44
भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता वर्णित है , जिसमें यह कहा गया है कि राज्य भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।
राज्य जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है
गोवा : 1961 में भारत द्वारा इस क्षेत्र को नियंत्रण में लेने पश्चात संसद नें 1867 के पुर्तगाली नागरिक संहिता को जारी रखने के लिए एक कानून बनाया। गोवा में इस कानून को गोवा सिविल कोड या गोवा फैमिली कोड के नाम से जाना जाता है। यह सभी गोवावासियों पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म या समुदाय से हों।
उत्तराखंड : उत्तराखंड समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है। अनुसूचित जनजातियों को छोड़ कर यह अधिनियम उत्तराखंड के सभी निवासियों पर लागू होता है।
समान नागरिक संहिता की आवश्यकता
समानता को बढ़ावा : एक समान नागरिक संहिता धार्मिक सम्बद्धता की परवाह किये बिना सभी नागरिकों के लिए समान कानून सुनिश्चित करके समानता को बढ़ावा देगी।
धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल : भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है। यह किसी धर्म विशेष को भारत के राष्ट्रीय धर्म के तौर पर मान्यता नहीं देता है। वर्ष 1976 में 42 वें संविधान संसोधन द्वारा संविधान की प्रस्तावना में ' धर्मनिरपेक्ष ' शब्द जोड़ा गया। समान नागरिक संहिता एक धर्मनिरपेक्ष राज्य को प्राप्त करने में मदद करेगा जहाँ व्यक्तिगत कानून सभी नागरिकों के लिए सामान रहेंगे , चाहे उनका धर्म कुछ भी हो।
लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा : विभिन्न धार्मिक समुदायों के वर्तमान व्यक्तिगत कानूनों के अंतर्गत महिलाओं की स्थिति विवाह, तलाक़, विरासत एवं संपत्ति के अधिकारों से सम्बंधित मामलो में बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है। समान नागरिक संहिता लागू होने से मौजूदा लैंगिक पक्षपात की समस्या से निपटा जा सकता है, जिससे लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिलेगा।
राष्ट्र की एकता और अखंडता को बढ़ावा : सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होने से राष्ट्रीय एकता और अखंडता की भावना को बल मिलेगा।
वैश्विक छवि में सुधार : समान नागरिक संहिता के माध्यम से समानता न्याय और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतो को बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध एक प्रगतिशील और समावेशी लोकतंत्र के रूप में भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि और सुदृढ़ होगी।
समान नागरिक संहिता लागू करने में चुनौतियां
धार्मिक प्रतिरोध : हमारा संविधान अपने नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है। समान नागरिक संहिता के माध्यम से एक समान कानून लागू होने से नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता का उलंघन होगा। विभिन्न धार्मिक प्रथाओं पर आधारित व्यक्तिगत कानून भारतीय समाज में गहराई से स्थापित है। धार्मिक और सांस्कृतिक प्रथाओं के प्रति संवेदनशीलता को देखते हुए, एक समान कानून लागु करने के किसी भी प्रयास को विभिन्न धार्मिक समूहों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है जिससे सामाजिक अशांति को उत्पन्न हो सकती है।
समान नागरिक संहिता के प्रारूप में स्पष्टता का आभाव : समान नागरिक संहिता (UCC) में क्या शामिल होना चाहिए , इस मुद्दे पर कोई आम सहमति नहीं है। विभिन्न हितधारकों के अलग अलग विचार हैं। समान नागरिक संहिता (UCC) के सिद्धांतो और प्रावधानों पर सहमति की कमी के कारण ऐसे समान नागरिक संहिता (UCC) की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है जो सभी धर्म के व्यक्तियों को स्वीकार हो।
सांस्कृतिक विविधता को खतरा : एक समान संहिता विभिन्न समुदायों के विशिष्ट रीति रिवाजों को पर्याप्त रूप से समायोजित नहीं कर सकता।
राज्य विधायिका के अधिकारों का अतिक्रमण : व्यक्तिगत मामलों के समवर्ती सूची में होने के कारण संसद और राज्य विधायिका दोनों को ही उनपर कानून बनाने का अधिकार है। समान नागरिक संहिता हेतु कानून बनाते समय संसद राज्य विधायिका के अधिकारों का अतिक्रमण कर सकती है।
राजनीतिक विरोध : समान नागरिक संहिता राजनीतिक रूप से एक संवेदनशील मुद्दा है। इसे लागू करने के किसी भी प्रयास को अन्य राजनीतिक दलों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
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