वेदों को श्रुति की श्रेणी में रखा गया हैं। श्रुति का शाब्दिक अर्थ हैं सुना हुआ। वेदो के विषय में यह मान्यता हैं की ये अपौरुषेय और निरुक्त हैं जिनको ऋषियों के द्वारा आत्मसात किया गया। 'वेद' शब्द 'विद' धातु से बना है जिसका अर्थ है- 'ज्ञान'। वेदों की संख्या चार है- ऋग्वेद, सामवेद , यजुर्वेद तथा अथर्ववेद ।
ऋग्वेद
चतुर्वेदों में यह प्राचीनतम सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा विशालतम है। वर्तमान में जिस शाखा का अध्ययन किया जाता है वह शाकल शाखा है जिसमें 1017 सूक्त हैं। यदि इसमें आठवें मंडल के 11 बालखिल्य सूक्त (परिशिष्ट) भी जोड़ दें तो ऋग्वेद में कुल 1028 सूक्त हो जाते हैं। वाष्कल शाखा में 56 सूक्त थे लेकिन वह उपलब्ध नहीं है।ऋग्वेद 10 मंडलों में विभाजित है। ऋग्वेद के द्वितीय मण्डल से सप्तम मण्डल को परिवार मण्डल / वंशमण्डल/ ऋषिमण्डल कहा जाता है। ऋग्वेद वेद का दसम मंडलसबसे बड़ा और द्वितीय मंडल सबसे छोटा हैं। लोपामुद्रा, घोषा, शची, पौलोमी, काक्षावृति नामक विदुषी महिलाओं को भी ऋग्वेद की ऋचाओं की रचना का श्रेय दिया जाता है। लोपामुद्रा विदर्भ राज की कन्या तथा अगस्त्य ऋषि की पत्नी थी। ऋग्वेद पाठ करने वाले पुरोहित 'होतृ' कहलाते थे। ऋग्वेद के कुछ सूक्त वार्तालाप शैली में है। विश्वामित्र नामक ऋषि तथा देवियों के रूप में पूजित दो नदियों (व्यास व सतलज) के बीच संवाद एक ऐसे ही सूक्त का अंश है। 'पुरुष सूक्त' में सर्वप्रथम चतुर्वर्णो (ब्राह्मण, क्षत्रिय /राजन्, वैश्य, शूद्र) का उल्लेख मिलता है।
ब्राह्मण ग्रंथ - ऐतरेय , कौषीतकी ।
आरण्यक - ऐतरेय ,कौषीतकी ।
उपनिषद - ऐतरेय, कौषीतकी ।
सामवेद
'साम' का अर्थ है गायन। सामवेद को भारतीय संगीत का जनक माना जाता है। सामवेद के मंत्रों का गायन करने वाले को उद्गाता कहा जाता था। सामवेद में कुल 1549 ऋचाएँ / मन्त्र है। इसमे से 75 ही स्वतन्त्र है शेष 1474 ऋग्वेद से ली गई हैं।
ब्राह्मण ग्रंथ - ताण्ड्य ब्राह्मण (पंचविश, महाब्राह्मण) ,षड्विष ब्राह्मण (अद्भुत ब्राह्मण),जैमिनीय ।
( ताण्ड्य ब्राह्मण बहुत बड़ा है। इसीलिए इसे महाब्राह्मण भी कहते हैं। यह 25 अध्यायों में विभक्त हैं, इसीलिए इसे पंचविश ब्राह्मण भी कहा जाता है। षड्विष ब्राह्मण को 'अदभुत' ब्राह्मण भी कहते हैं। )
आरण्यक - छांदोग्य ,जैमिनीय (तलवकार) ।
उपनिषद - जैमिनीय, केन ।
यजुर्वेद
'यजुष' का अर्थ 'यज्ञ' होता है। यजुर्वेद यह एक कर्मकाण्डीय वेद है। यह वेद गद्य एवं पद्य दोनों में रचित है। इसका पाठ करनें वाले पुरोहित को 'अध्वर्यु' कहा गया हैं। यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं - कृष्ण यजुर्वेद और शुक्ल यजुर्वेद ।
1. कृष्ण यजुर्वेद :
ब्राह्मण ग्रंथ - तैत्तिरीय
आरण्यक - तैत्तिरीय
उपनिषद - तैत्तिरीय श्वेताश्वतर, मैत्रयाणीय
2. शुक्ल यजुर्वेद :
ब्राह्मण ग्रंथ- शतपथ
आरण्यक- शतपथ
उपनिषद - ईश, बृहदारण्यक
अथर्ववेद
अथर्वा नामक ऋषि इसके प्रथम दृष्टा है अत: इसे 'अथर्ववेद' कहा जाता है। इसके दूसरे दृष्टा अंगिरस ऋषि है इसलिए इसे अथर्वांगिरस वेद भी कहते हैं। अथर्ववेद की दो शाखाएं है- 1. पिप्पलाद 2. शौनक । इसमें शौनक शाखा को अधिक प्रामाणिक माना जाता है। अथर्ववेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले पुरोहित को ब्रह्मा कहा जाता था। अथर्ववेद में परीक्षित को मृत्युलोक का देवता तथा विश्वजनीन राजा कहा गया है। अथर्ववेद में मगध और अंग का उल्लेख किया गया है।
ब्राह्मण ग्रंथ- गोपथ
आरण्यक - अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है।
उपनिषद- मुंडक, मांडूक्य, प्रश्न


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