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चट्टान

 पृथ्वी की  पर्पटी चट्टानों से बनी होती है। चट्टान का निर्माण एक या अधिक खनिजों से मिलकर होता है। चट्टानें कठोर या नरम हो सकती हैं। चट्टानें विभिन्न रंगों की हो सकती हैं। 

चट्टानों  के प्रकार 

आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)
अवसादी चट्टानें ( Sedimentary Rocks)
रूपांतरित या कायांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)


आग्नेय चट्टानें 

आग्नेय शब्द लैटिन भाषा के  'इग्नीस' से लिया गया है जिसका अर्थ ‘आग’ होता है। अत: ये ऐसी चट्टानें हैं जिनका निर्माण पृथ्वी के भीतरी भाग में उपस्थित गर्म द्रव्य के ठण्डा होने से हुआ है। तरल मैग्मा या लावा जब ठंडा होकर पृथ्वी की आंतरिक या वाह्य परतों में जमकर ठोस अवस्था प्राप्त कर लेता है तब आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। इनको प्राथमिक शैलें  या जनक चट्टानें  भी कहते हैं।
इनमें रवे पाए जाते हैं जिनका आकार मैग्मा के ठण्डा होने की गति पर निर्भर करता है। मैग्मा के शीघ्र ठण्डा होने से रवे छोटे तथा देर से ठण्डा होने से रवे बड़े बनते हैं। इनमें रन्ध्र नहीं होते जिससे इनमें जल सुगमता से प्रवेश नहीं कर सकता। इनमें जीवाश्म (fossils) नहीं पाए जाते। इन चट्टानों में खनिज तत्वों की प्रधानता होती है। इन चट्टानों पर अपरदन क्रिया कम होती है।

आग्नेय चट्टानों  का वर्गीकरण

  •  स्थिति के आधार पर : 
1. आंतरिक आग्नेय चट्टानें : 

    A. पातालीय चट्टानें : जब मैग्मा पृथ्वी  के अंदर अधिक गहराई में ठंडा होकर जम जाता है तो पातालीय आग्नेय चट्टानों का निर्माण होता है। इनका शीतलन मंद गति से होता है। अतः इनके रवे बड़े आकर के होते हैं। उदाहरण - ग्रेनाइट।
    B. मध्यवर्ती चट्टानें : जब भूगर्भ से निकलने वाला मैग्मा मार्ग में मिलने वाले दरारों या संधियों में जमकर ठोस अवस्था में परिवर्तित हो जाता हैं तो इस प्रकार की चट्टानों को मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानें कहा जाता है। मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानों का निर्माण करने वाला मैग्मा पातालीय चट्टानों के निर्माण करने वाले मैग्मा से जल्दी ठंडा हो जाता है जिस कारण मध्यवर्ती आग्नेय चट्टानों के रवे पातालीय चट्टानों के रवों से छोटे होते हैं। उदाहरण - डोलेराइट, पेग्मेटाइट।
2. वाह्य आग्नेय चट्टानें : ज्वालामुखी के अंदर से निकले हुए लावा के पृथ्वी  के सतह पर आकर ठन्डे होने से जो चट्टानें बनती है उन्हें बाह्य आग्नेय चट्टानें कहे है। पृथ्वी की सतह पर लावा का शीतलन तीव्र गति से होता है जिसके कारण इनमे सामान्यतः ग्रेनाइट की तरह बड़े आकर के रवे दिखाई नहीं देते। उदाहरण - बेसाल्ट। 
  •  संरचना के आधार पर  :
1. अम्लीय आग्नेय चट्टानें : इनमें सिलिका की मात्रा अधिक होती हैं। ये चट्टानें काफी कठोर प्रकृति की होती हैं जिससे अपरदन की प्रक्रिया काफी मंद गति से होती हैं। उदाहरण - ग्रेनाइट।
2. क्षारीय  आग्नेय   चट्टानें :    इनमें सिलिका की मात्रा तुलनात्मक रूप से कम होती है। इस प्रकार के चट्टानों की प्रकृति प्रायः मुलायम होती है जिससे अपरदन के कारकों द्वारा  अपरदन कर पाना अधिक आसान होता है 


अवसादी चट्टानें

विभिन्न आकार  एवं प्रकार के अवसादों का परतों के रूप में जमाव होने से तथा कालांतर में ऊपरी दबाव के कारण इसके सख्त हो जानें से अवसादी चट्टानों का निर्माण होता हैं। ये चट्टानें परतों के रूप में भी पायी जाती हैं अतः इन्हें परतदार चट्टानें  भी कहते हैं। स्थलमंडल के अधिकांश भाग पर अवसादी चट्टानें पायी जाती हैं।
इन चट्टानों में जीव-जन्तुओं तथा वनस्पति के जीवाश्म मिलते हैं। इन चट्टानों में रवे नहीं होते।ये चट्टानें छिद्रमय होती हैं। छिद्रों के कारण उनमें पानी सुगमता से प्रवेश कर सकता है जिस कारण इन्हें सरन्ध्र चट्टानें कहा जाता है। ये चट्टानें आग्नेय चट्टानों की अपेक्षा नरम होती है। इन चट्टानों मे पर्तें स्पष्ट दिखाई देती हैं। इसी कारण इन्हें स्तरीय चट्टानों के नाम से भी पुकारा जाता है।


रूपांतरित या कायांतरित चट्टानें

इस वर्ग में वे चट्टानें आती हैं जो अपने वास्तविक रूप से परिवर्तित हो चुकी हैं। पृथ्वी पर पाए जाने वाले ताप अथवा दाब अथवा दोनों के संयुक्त प्रभाव के कारण आग्नेय अथवा अवसादी चट्टानों के रंग- रूप, संरचना, कठोरता आदि में परिवर्तन आ जाता हैं। इस परिवर्तन के कारण बनी चट्टानों को रूपांतरित या कायांतरित चट्टानें  कहते हैं।

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