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ब्रिक्स

 उत्पत्ति 

वर्ष  2006 में अनौपचारिक समूह के रूप में स्थापना के समय ब्रिक्स समूह को मूल रूप से ब्रिक के नाम से जाना जाता था। पहला BRIC शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रूस के येकतेरिनबर्ग में हुआ। दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया था, जिसके बाद इस समूह ने संक्षिप्त नाम BRICS अपनाया। मार्च 2011 में दक्षिण अफ्रीका ने पहली बार चीन के सान्या में तीसरे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया। 

सदस्य देश

वर्तमान समय  में  ब्रिक्स विश्व के पाँच  बड़े विकासशील देशों  को एक साथ लाता है, जो वैश्विक आबादी का 41%, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24% तथा वैश्विक व्यापार का 16% प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके सदस्य देश  निम्नलिखित हैं -

  • ब्राज़ील
  • रूस
  • भारत
  • चीन
  • दक्षिण अफ्रीका

 15वां ब्रिक्स शिखर सम्मलेन और ब्रिक्स का विस्तार : 

वर्ष 2022 में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के बाद से वैश्विक स्थिरता और सुरक्षा प्रभावित हुई है। यूक्रेन संघर्ष पर रूस को "अलग-थलग" करने के प्रयासों के बीच ब्रिक्स के विचार-विमर्श का महत्त्व बढ़ गया है। अगस्त 2023 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में स्थित सैंडटन कन्वेंशन सेंटर में 15वां  ब्रिक्स शिखर सम्मलेन आयोजित  किया गया । 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का विषय था - "ब्रिक्स और अफ्रीका: पारस्परिक रूप से त्वरित संवृद्धि, सतत  विकास और समावेशी बहुपक्षवाद के लिये साझेदारी (BRICS and Africa: Partnership for Mutually Accelerated Growth, Sustainable Development and Inclusive Multilateralism)" । 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मलेन में 6 नए देशों को शामिल करने की घोषणा की गयी हैं जो  निम्नलिखित हैं -

  • मिस्र
  • ईरान
  • सऊदी अरब
  • संयुक्त अरब अमीरात
  • इथियोपिया
  • अर्जेंटीना  

ब्रिक्स के समक्ष चुनौतियां 

ब्रिक्स सदस्य देशों के आर्थिक राजनीतिक हित अलग - अलग हैं। सदस्य देशों के बीच भू - राजनीतिक तनाव सहयोग पर दबाव दाल सकता हैं। भारत और चीन के बीच सीमा मुद्दों पर विवाद रहे हैं तथा यूक्रेन में रूस की कार्रवाइयों ने पश्चिमी देशों के साथ संघर्ष की स्थिति पैदा की है, जो अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिक्स की गतिशीलता को प्रभावित कर रहा है। पश्चिमी देशों की व्यापार नीतियां और उनके  द्वारा लगाए गए प्रतिबन्ध ब्रिक्स की स्वायत्तता और निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकते  हैं। ब्रिक्स के सदस्यों की प्राथमिकताएं अलग-अलग होने के कारण समूह के लिए वैश्विक मुद्दों और पहलों पर निर्णायक कार्रवाई करना कठिन हो जाता है। ब्रिक्स में चीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। चीन का उदय ब्रिक्स के भीतर सहयोग और प्रतिस्पर्धा दोनों का स्रोत रहा है। चीन बुनियादी ढांचे के विकास जैसे कुछ मुद्दों पर अन्य ब्रिक्स देशों के साथ सहयोग करने को इच्छुक रहा है। इसके साथ ही चीन अपनी विदेश नीति में आक्रामक रहा है जिससे समूह में तनाव  के बिंदु उभर कर आए हैं।

ये देश 1 जनवरी 2024 से आधिकारिक रूप से ब्रिक्स के पूर्ण सदस्य बन जायेंगे। यह ब्रिक्स की वैश्विक स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में एक ठोस प्रयास को दर्शाता है। गुट का विस्तार करने से  इसका आर्थिक  और राजनीतिक प्रभुत्व और अधिक  बढ़ेगा, जिससे उभरते बाजार वाले अर्थव्यवस्थाओं को कोई  निर्णय लेने की प्रक्रिया में  अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे। नए सदस्यों की रचनात्मक भूमिका समूह के बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक हैं। ब्रिक्स देश जलवायु परिवर्तन, निर्धनता और असमानता जैसी कई आम चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। समूह का विस्तार करने से इन चुनौतियों का अधिक प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिए संसाधनों, नवाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा मिलेगा।


भारत के लिये महत्त्व

ब्रिक्स, आतंकवाद, साइबर सुरक्षा एवं समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहयोग प्रदान करके भारत को अपनी सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकता है। ब्रिक्स, भारत को चीन सहित अन्य देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। यह मंच भारत को जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और परमाणु अप्रसार जैसे कई मुद्दों पर इन दोनों देशों के साथ जुड़ने के लिए एक मंच प्रदान करता है। ब्रिक्स का विस्तार भारत को अपनी संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। यह विस्तार भारत को अपने हितो और मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा मंच प्रदान करेगा। साथ ही यह  विस्तार भारत को नए बाजारों और निवेश के  अवसरों तक पहुंच भी प्रदान करेगा। 

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