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राजतरंगिणी किसकी रचना है ?



12वी सदी में कल्हण द्वारा राजतरंगिणी की रचना  संस्कृत में की गयी थी।  'राजतरंगिणी' का शाब्दिक अर्थ है - राजाओं की सरिता , जिसका भावार्थ है - 'राजाओं का इतिहास या समय-प्रवाह'। इसमें 8 तरंग तथा लगभग 8000 श्लोक है। प्रथम तीन तरंगो में कश्मीर का प्राचीन सर्वेक्षण किया गया है। चौथे से छठे तरंगो में कर्कोट व उत्पल वंशो तथा सातवें व आठवें तरंग में लोहार वंश का इतिहास संकलित है। चौथे से आठवें तरंगो का वर्णन अपेक्षाकृत प्रमाणित है। इनमे कल्हण नें घटनाओं का तिथि क्रमानुसार वर्णन किया है। इसके लिए कल्हण नें पुरातात्विक साक्ष्यों का भी उपयोग किया है। कल्हण के विवरण में निष्पक्षता है। वह शासकों के गुणों के साथ साथ अवगुणो का भी स्पष्टतः उल्लेख करता है।

कल्हण लोहार वंश के शासक हर्ष का आश्रित कवि था। हर्ष विद्वान होने के साथ साथ क्रूर व अत्याचारी भी था। कल्हण के अनुसार हर्ष सुख-सुविधाओं तथा शान-शौकत पर पानी की तरह धन व्यय करता था। उसकी फिजूलखर्ची के परिणामस्वरूप राज्य में आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। अपने खर्च को पूरा करने के लिए उसने प्रजा पर भरी कर लगाए तथा मंदिरों व मठों की संपत्ति तथा रत्नजड़ित मूर्तियों को लूटना शुरू कर दिया। इन कारणों से कल्हण नें उसे 'तुरुष्क' कहा है। कल्हण की राजतरंगिणी का विवरण लोहार वंश के शासक जयसिंह के शासन के साथ ही समाप्त होता है। 

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